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कविता: वो मंत्र नमो है

Wednesday, January 29, 2014

व्यंग्य: आज बुधवार है

   ज बुधवार है. आप सबके लिए यह दिन बेशक और दिनों की तरह आम हो सकता है, लेकिन मेरे जीवन में यह दिन विशेष महत्व रखता है. पूरे दिन नौकरी करने के पश्चात शाम को घर पर जब मैं चाय पीकर सुस्ताने की कोशिश करूँगा, तो अचानक माँ की कड़क आवाज़ मुझे हमेशा की तरह याद दिला देगी, कि आज बुधवार है. मैं भी सुस्ती से अंगड़ाई लेते हुए उनसे कहूँगा, कि मुझे मालूम है कि आज बुधवार है और कुछ देर बाद सुस्ताने के बाद माँ को अपनी फटफटिया पर बैठा कर चल दूँगा घर से कुछ दूर पर बुधवार को लगनेवाले सब्जी बाज़ार यानि कि बुध बाज़ार को. बुध बाज़ार के छोर पर पहुँचते ही माँ अपनी साड़ी  के पल्लू को अपनी कमर में कसेंगी और चल पड़ेंगी सब्जियों को अपने हाथ में विराजमान थैलों में कैद करने को. आज भी बड़ी-बड़ी गाड़ियों से उतरते हुए धन्ना सेठों को मैं बुध बाज़ार के किनारे पर एक कोने में बैठे हुए अपने मोबाइल में उलझा हुआ अपनी कनखियों से देखूँगा. धन्ना सेठ आगे बढ़कर सब्जी बेचनेवालों से आगे बढ़कर मोर्चा लेंगे और सब्जी को एक रुपया और सस्ता करवाने की खातिर उन सबसे लड़-लड़ पड़ेंगे. आज मैं बुध बाज़ार के सब्जी दुकानदारों का वही पौरुष फिर से देखूँगा, जिसके बल पर वे सभी उन धन्ना सेठों से जमकर लोहा लेंगे और कुछ पलों के लिए स्वयं को ही धन्ना सेठ समझने लगेंगे. आज फिर से बुध बाज़ार राजनीति का अखाड़ा बन जाएगा. लोग सब्जियां खरीदते-खरीदते उनके बढ़ते दामों के लिए सरकार को गरियाते हुए उसकी ऐसी-तैसी करेंगे. इस काम में सब्जी दुकानदार भी अपने ग्राहकों का संग देंगे. और इस प्रकार कुछ देर के लिए दुकानदारों व ग्राहकों में भाईचारा स्थापित हो जाएगा. फिर कुछ देर बाद भाव गिराने को लेकर होनेवाली जोरदार बहस से कुछ समय पहले बना यह भाईचारा एक क्षण में खंड-खंड हो जाएगा. आज फिर सरकार द्वारा महंगाई से आम आदमी की कटी हुई जेब को फिर से काटने की फ़िराक में कुछ सद्चरित्र भले मानस बुध बाज़ार में ताक लगाकर घूमेंगे. या तो वे अपने कार्य में सफलता प्राप्त करेंगे या फिर असफल होने पर पुलिसवालों की मार खाते हुए उनके लट्ठ पर जमी हुई धूल को साफ़ करेंगे. बहती गंगा में हाथ धोने को तत्पर कुछ अति भले मानवों द्वारा भी उनका शरीर लात व घूंसों से धुना जाएगा. महिलाएँ बुध बाज़ार में आज फिर से एक चलती-फिरती चुगल गोष्ठी का आयोजन करेंगी और अपने-अपने मोहल्ले में एक नए संघर्ष को जन्म देने का शुभारंभ करेंगी. आज फिर से आधुनिकता की उपज युवा कन्यायें नारी स्वतंत्रता का विचार अपने हृदय में बसाये अपने तंग कपड़ों में बुध बाज़ार में कैटवाक करती मिलेंगी और बुध बाज़ार में उपस्थित छिछोरों, जिन्हें आधुनिक भाषा में कूल ड्यूड नाम से सुशोभित किया जाता है, के अश्लील इशारों व मधुर सीटियों का रसास्वादन करेंगी. मैं इन सभी घटनाओं को घटित होते हुए देखकर विचार मग्न होने को तैयार ही होऊँगा, कि तभी माँ अपने दोनों थैलों में सब्जियों कैद करके थकी-मांदी विजयी मुद्रा में फिर से खड़ी हो जाएँगी मेरे सामने और मैं उन्हें अपनी फटफटिया पर बिठाकर चल दूँगा घर की ओर फिर से अगले बुधवार को बुध बाज़ार आने के विषय में सोच-विचार करते हुए.   

सुमित प्रताप सिंह 


इटावा, नई दिल्ली, भारत