भाग 1.
दूसरा दिन
दूसरा दिन शुरू हुआ 5.30 बजे शाखा के कार्यक्रम से जिसमें हलका फुल्का व्यायाम करवाया गया और उसके बाद चाय तैयार थी जो पीना चाहे | इसके बाद लगभग 6.30 बजे सभी गंगा स्नान के लिए हर की पौढ़ी की तरफ चल दिए यहाँ सुविधा से जाने के लिए टेम्पो जो 10 रुपये सवारी लेते हैं एक अच्छा साधन है अगर भीड़ का समय नही है तो यह आपको हर की पौड़ी के बाहर ही उतार देते हैं और अगर भीड़ का समय है तो आपको भीमगौडा पर ही रोक दिया जाता है उसके आगे के लिए आप दोबारा रिक्शा कर सकते हैं | हर की पौड़ी :---
वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
हर की पौड़ी पर पहुँचने के लिए काफी सारी सीड़ियाँ नीचे उतरनी पड़ती हैं यहाँ हर सीढ़ी पर भिखारी अपना कब्ज़ा किये बैठे हैं और गन्दगी तो बेशुमार है यहाँ प्रशासन की ओर से कमी अभी भी खलती है यहाँ कोई कूड़ादान नजर नही आता है यहाँ खाली दूध की थैलियाँ, फूल पत्ते और बाकी कचरा फैंका जा सके |
कुछ सीडियां उतर कर जूता स्टैंड है यहाँ आप अपने जूते जमा कराकर हर की पौड़ी पर स्नान के लिए जा सकते हैं दो जूता घर हैं दोनों तरफ से आने वालों के लिए लेकिन जूते अगर ज्यादा हों तो इनके पास कोई बोरी या थैले की सुविधा नही है और आपका सामान वगेरह रखने की कोई सुविधा यहाँ नहीं है जो लोग अकेले आते हैं वो घाट पर बैठे किसी भी पण्डे के पास अपना कीमती सामान रख सकते हैं जिसके वो निसंदेह पैसे लेते हैं मुफ्त सुविधा कोई नहीं है |
हर की पौड़ी पर ही एक महिला घाट है जो बस नाम मात्र का है जिसमें पहले रेत भरी रहती थी अब उसमें पानी ही नही है इसलिए सब महिलाएं बाहर नहाना ही पसंद करती हैं | महिला घाट के अन्दर कुछ तख़्त पड़े हैं जिन पर मोटी मोटी पंडिताईन बैठी हैं जो आपका सामान रखने का आपसे पैसा लेती हैं | यहाँ महिलाएं सिर्फ कपडे बदलने के लिए आती हैं |
हमने सबने बारी बारी स्नान किया और फिर बाहर आ गए और दोबारा अपने जूते वापिस लेकर हम सीड़ियाँ चढकर बाहर पहुँच गए और फिर हमने यहाँ से टेम्पो किया धर्मशाला के लिए जो आने के लिए तो प्रति सवारी दस रुपये किराया ले रहा था लेकिन वापिसी में प्रति सवारी बीस रुपये किराया लिया गया | खैर हम सब 8 बजे तक धर्मशाला पहुँच गए थे |
8.30 बजे नाश्ते के लिए जाना था इसलिए सब दोबारा स्नान कर तैयार होने चले गए क्योंकि गंगा नहाने के बाद कपड़ों में रेत आ जाती है | इसके बाद नाश्ता किया गया नमकीन और मीठे दलिए के साथ |इसके बाद हर कोई स्वतंत्र था यहाँ भी कोई जाना चाहे | कुछ लोग नीलकंठ चले गए कुछ मनसा देवी ,कुछ ऋषिकेश और हमारा ग्रुप तैयार हुआ पतंजलि योगपीठ जाने के लिए |
पतंजलि योगपीठ यहाँ से लगभग 25 किलोमीटर दूर है इसलिए नाश्ता करने के बाद लगभग 9.30 बजे हम सब निकल पड़े ताकि दोपहर के भोजन तक हम वापिस धर्मशाला में आ सकें |
यहाँ जाने के लिए हमने दो टेम्पो किये क्योंकि एक में सात लोग बैठ सकते हैं सभी लोग इसमें बैठ कर निकल पड़े वहां पहुँचने में हमें लगभग 45 मिनट लगे |टेम्पो वाले ने वहां जाने के लिए प्रति सवारी 30 रुपये लिए |
यहाँ पहुंचने के बाद थोडा घूम कर हमने इसे देखा फिर जलपान के लिए पहुंचे इसकी कैंटीन में जिसका नाम है 'अन्नपूर्णा ' यहाँ की शुद्ध घी से निर्मित जलेबी का स्वाद आप चखे बिन नहीं रह सकते | सबने यहाँ फ्रूट चाट ,गोलगप्पे, जलेबी और चाट पकौड़ी खाई सभी स्वादिष्ट बना हुआ था यहाँ शुद्ध घी से निर्मित मिठाइयाँ भी मिलती हैं |
वापिसी में काफी गर्मी थी और ट्रैफिक जाम भी बहुत था इसलिए थोड़ा देर से पहुंचे हम धर्मशाला | फिर थोडा विश्राम करने के बाद भोजन का समय हो चूका था इसलिए हम सबने भोजन किया और अपने अपने कमरे में चले गए |
शाम के समय जो नील कंठ गए थे उनको काफी देर हो गई आने में और इतनी गर्मी के कारण कहीं भी जाने का मन नहीं हुआ इसलिए हम धर्मशाला के बाहर ही कुर्सी लगा कर बैठ गए और ठंडी तजि हवा का आनन्द लिया | कुछ लोग उस समय हर की पौढ़ी और कुछ पास वाले घाट पर नहाने के लिए चले गए |
अब सब अपने अपने कमरे में चले गए आराम करने | रात को 9 बजे फिर सभी भोजन के लिए पहुँचे |
तीसरा दिन
आज सुबह सभी उठकर अपने कार्यों से निवृत होकर नाश्ता करने चले गए | उसके बाद लगभग 9 बजे सभी अपने अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए | हम कुछ लोगों ने शांतिकुंज जाने का कार्यक्रम बनाया जो धर्मशाला से केवल 10-12 किलोमीटर की दूरी पर ही था ,इसलिए सबने टेम्पो ले लिया और 10..10 रुपए देकर वहां पहुँच गए |शांतिकुंज :-
रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से हर की पौड़ी पहुंचने के बाद यहाँ से बाई पास रोड़ में सूखी नदी तथा भारतमाता मन्दिर पार करके उसी मार्ग पर शांतिकुंज स्थित है। यहाँ पर कार से पँहुचने में 15 मिनट, रिक्शा से पँहुचने में 30 मिनट, एवं पैदल पँहुचने में 45 मिनट लगते है।
संस्थान की स्थापना :
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा द्वारा इस आश्रम की स्थापना 1971में की गई थी।
अंदर जाने से पहले प्रवेश सूचना देनी होती है रजिस्टर में लिख कर कितने लोग जा रहे हैं | बहुत ही साफ़ सफाई और सुव्यवस्था का संगम है शांतिकुंज ,यहाँ बहुत सारे लोग अपनी वृद्ध अवस्था में आकर रहते हैं ,यहाँ रहने की बहुत ही सुंदर व्यवस्था है | जैसे अंदर पूरा एक क़स्बा बस्ता है | इसके अंदर ही दो कैंटीन हैं एक कैंटीन में कुछ सस्ता सामान मिलता है इसके साथ ही भोजनालय है यहाँ पर दिन में दो बार मुफ्त भोजन की व्यवस्था है यहाँ पर कुछ लोग आकर दान रूप में भोजन वितरण भी करते हैं | अंदर ही आयुर्वेदिक दवाइयां जो यहाँ निर्मित होती हैं उचित मूल्य पर मिलती हैं | बहुत सारे विभाग हैं यहाँ ,जिनमे लोग रहते हैं ,उनको ऋषिओं के नाम पर नाम दिया गया है | यहाँ जूते रखने की व्यवस्था बहुत ही उत्तम है | शांति कुञ्ज की कुछ झलकियाँ ...
जैसे की गर्मी बहुत अधिक हो रही थी इसलिए हमने जल्दी वापिस आना ही उचित समझा | वापिस आकर हमने दोपहर का भोजन लिया और वापिस अपने अपने कमरे में चले गए |
शाम को गंगा आरती देखने का प्रोग्राम था जिसे देखने के लिए लोग बहुत दूर दूर से हर की पौढ़ी पर पहुंचते हैं | क्योंकि आरती का समय 7 बजे के बाद का रहता है और हमें बाजार से कुछ सामान भी लेना था इसलिए हम 5 बजे तक धर्मशाला से निकल चुके थे ,क्योंकि भीमघोड़ा सड़क पर चप्पल की बहुत अच्छी दुकाने हैं यहाँ मोल भाव करके बहुत मजबूत चप्पलें आप ले सकते हैं |उसके बाद हमने दोबारा रिक्शा किया हर की पौढ़ी के लिए |
आरती शुरू होने वाली थी ,इसलिए सबको गंगा किनारे बिठाने के लिए वहां काफी कार्यकर्त्ता तैनात थे वहां प्लास्टिक की पन्निओं की बनी चादरें बिछा दी गई थीं ,जिस पर सब बैठ गए आरती का आनंद लेने के लिए और लोग जो आते रहे सब पीछे खड़े होते गए | तभी मन्त्र उच्चारण के साथ शुरू हुई गंगा आरती जिसमें 11 या 13 पंडितों ने भाग लिया ,रात होने को थी और कल कल बहती गंगा के किनारे जगमगा उठे थे लहरों पर भी दिए सवार होकर निकल पड़े थे दूसरे गंतव्य को सभी अपलक इस दृश्य को अपने अपने कैमरे में कैद करने लग गए थे | जो सेवक तैनात थे सबकी व्यवस्था करने में लगे थे ,सबके हाथ में एक एक पुस्तिका थी यानि दान पर्ची ,जो आरती के उपलक्ष्य में जलाये जाने वाले दिओं के लिए दान स्वरुप ली जा रही थी | आइये आपको ले चलें गंगा किनारे आरती दर्शन के लिए कुछ झलकियों के साथ ....
आरती से फ्री होकर हम सब वापिस धर्मशाला के लिए चले ,वापिसी में बहुत मुश्किल से रिक्शा मिली भीमगौडा तक वो भी दुगने पैसों के साथ और वहां से आगे कोई टेम्पो 200 रुपये से कम जाने को तैयार नही हो रहा था जिसकी आने की कीमत हमने सिर्फ 70 रुपये दी थी | वहां कोई आपको सुनने वाला नही है | बहुत मुश्किल से हम धर्मशाला पहुंचे और खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए |
....सरिता भाटिया