Saturday, January 26, 2013

गीत: जियो वतन के वास्ते

जियो वतन के वास्ते
मरो वतन के वास्ते 
माटी का कर्ज़ चुकाने को
कुछ करो वतन के वास्ते

उनका भी क्या जीना है
जो खुद ही जीते-मरते हैं
जो मिटते देश की खातिर
वो मरके भी न मरते हैं
बहुत जी लिये अपनी खातिर
अब मरो वतन के वास्ते
जियो वतन के वास्ते...

वीर कभी श्रृंगारों में 
वक्त नहीं जाया करते 
मौसम कुर्बां होने के 
न बार-बार आया करते 
जब भी धरा पुकारे तुमको 
न डरो वतन के वास्ते
जियो वतन के वास्ते...

लेखक- सुमित प्रताप सिंह





नई दिल्ली

6 comments:

  1. yugalJanuary 26, 2013 at 10:58 AM

    क्या बात है,सुमितजी, और क्या जज्बा.शानदार!
    "राह क़ुर्बानियों की न वीरान हो,तुम सजाते ही रहना नये क़ाफ़िले.""ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर,जान देने की रुत रोज़ आती नहीं."

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    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJanuary 28, 2013 at 10:44 AM

      शुक्रिया युगल जी...

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  • Anju (Anu) ChaudharyJanuary 26, 2013 at 12:30 PM

    बहुत खूब

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    1. सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJanuary 28, 2013 at 10:45 AM

      शुक्रिया अंजू चौधरी जी...

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  • VIRESH ARORAJanuary 30, 2013 at 4:12 PM

    वाह सुमित जी क्या खूब लिखा है ..... बहुत बधाई। इस गीत को तर्ज और अपनी आवाज कब दे रहे हो .....बहुत ही अच्छा गीत है।

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  • Swarda SaxenaFebruary 15, 2013 at 10:19 PM

    awaome.. जियो वतन के वास्ते...

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