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क्या बात है,सुमितजी, और क्या जज्बा.शानदार!
"राह क़ुर्बानियों की न वीरान हो,तुम सजाते ही रहना नये क़ाफ़िले.""ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर,जान देने की रुत रोज़ आती नहीं."
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सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJanuary 28, 2013 at 10:44 AM
शुक्रिया युगल जी...
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Anju (Anu) ChaudharyJanuary 26, 2013 at 12:30 PM
बहुत खूब
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सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap SinghJanuary 28, 2013 at 10:45 AM
शुक्रिया अंजू चौधरी जी...
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VIRESH ARORAJanuary 30, 2013 at 4:12 PM
वाह सुमित जी क्या खूब लिखा है ..... बहुत बधाई। इस गीत को तर्ज और अपनी आवाज कब दे रहे हो .....बहुत ही अच्छा गीत है।
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Swarda SaxenaFebruary 15, 2013 at 10:19 PM
awaome.. जियो वतन के वास्ते...
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यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!
क्या बात है,सुमितजी, और क्या जज्बा.शानदार!
ReplyDelete"राह क़ुर्बानियों की न वीरान हो,तुम सजाते ही रहना नये क़ाफ़िले.""ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर,जान देने की रुत रोज़ आती नहीं."
शुक्रिया युगल जी...
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया अंजू चौधरी जी...
Deleteवाह सुमित जी क्या खूब लिखा है ..... बहुत बधाई। इस गीत को तर्ज और अपनी आवाज कब दे रहे हो .....बहुत ही अच्छा गीत है।
ReplyDeleteawaome.. जियो वतन के वास्ते...
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