विषय: नारी शोषण
जब उठेगा स्तर गिरेगी साख
कलयुग में नारी की रोयेगी आँख
कितना करेगी सहन जब इज्जत पर लगेगा दाग
किसके दर पर जाकर करेगी फ़रियाद
जब सोयेगी सरकारे नहीं बचेगी लाज
खुद जिस हमाम मे है सब नंगे किसे दे सम्मान
आज हम रहे कोस, उसी को हमने ही दिया था राज
जब अगुवा होंगे अमर पापी कांडा तो क्या बचेगा समाज
उठो अब बहुत हो चुका बहू-बेटी का अपमान
खुद ही बनो रक्षक अपने खुद ही यमराज
रहें सुलगती चिता पर जब तलक आग
कौन खेलेगा होली कौन गायेगा फाग
कल का सूरज फिर उगेगा फिर कल फिर होगी रात
होगी सड़कें सूनी फिर होगी वारदात
लुट रही होगी 'दामिनी' लिये आँसू की बरसात
'नरेश' इंकलाब के आगे किसकी रहे बिसात।
रचनाकार: श्री नरेश यादव
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