जैसे समाज में आम चोरों की पहचान के लिए उनका विभिन्न थानों में जीवन परिचय सहेज कर रखा जाता है, वैसे ही ऐसे साहित्यिक चोरों का पूर्ण परिचय भी वर्चुअल संसार पर एक कोश बनाकर डाला जा सकता है और उसका नाम “साहित्यिक चोर कोश” रखा जा सकता है. इस कोश में साहित्यिक चोर का कुटिलतापूर्वक मुस्कुराता हुआ चित्र, उसका धरती पर बोझ बनने का निश्चित समय, तिथि व स्थान डालने के साथ-साथ इस बात का भी उल्लेख किया जाये कि वह किस विधा में चोरी करने में पारंगत है एवं अब तक चोरी कर-करके उसने कितना साहित्यिक माल इकठ्ठा कर लिया है. चोर के बगल में ही उस बेचारे रचनाकार का रोता हुआ चित्र, उसका जीवन परिचय तथा उसकी उस रचना का उल्लेख हो जिसको चोरी करके चोर महाराज ने अपना लेखकीय पोषण किया हो. इसके साथ-साथ चोर महाराज के उन अंध समर्थकों के चित्र व परिचय भी प्रदर्शित किए जायें, जो चोर की चोरी को समर्थन देकर महान बनने के लिए तत्पर रहे.
जैसे विभिन्न सोशल साइटों पर लाइक व शेयर के ऑप्शन होते हैं वैसे ही इस साहित्यिक चोर कोश पर भी ऑप्शन की सुविधा होनी चाहिए. पहला ऑप्शन ऐसा हो जिसपर क्लिक करते ही साहित्यिक चोर का मुँह काला हो जाये. इस ऑप्शन पर डबल क्लिक करने पर चोर के अंध समर्थकों के मुँह भी काले हो जायें. दूसरे ऑप्शन पर क्लिक करते ही चोर के एक जोरदार झापड़ पड़े. तीसरे ऑप्शन पर क्लिक करने पर दो हाथ प्रकट हों और चोर के दोनों कानों को जाकर ढंग से पकड़कर जोर से उमेठें. चौथे ऑप्शन में यह सुविधा हो कि उस पर क्लिक करते ही चोर महाराज मुर्गासन की स्थिति में कुछ पल के लिए आ जायें. अंतिम ऑप्शन पर क्लिक करते ही एक रूमाल प्रदर्शित हो और चोर महाराज के शिकार हुये रचनाकार की आँखों से बहते हुये आँसुओं को जाकर पोंछ डाले परिणामस्वरूप दुखी रचनाकार का चेहरा खुशी से खिलखिलाने लगे.
साहित्यिक चोर कोश से चाहे अधिक लाभ न हो लेकिन रचनाकारों को उन चोरों से सावधान होने का अवसर तो मिल ही जायेगा जो सदैव पकी-पकाई रचना को उड़ाकर उसे अपना बनाकर वाहवाही लूटने की जुगत में रहते हैं. चोरों को भी अपनी ऑनलाइन बेइज्जती होने पर कुछ लाज-शरम तो आएगी ही और आइंदा चोरी-चकारी करने से बाज आयेंगे. बाकी जो बेशर्म चोर हैं उनसे हम रचनाकारों को बचानेवाला तो एकमात्र परम पिता परमेश्वर ही है.
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत