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सावधान! पुलिस मंच पर है

Monday, February 29, 2016

जन मानस का जीवन वृतांत सुनाती हुई पुस्तक


     सुमित प्रताप सिंह की नवप्रकाशित पुस्तक 'सावधान! पुलिस मंच पर है’ पढ़ी जा रही है। हाथ में आते ही यह कविता संग्रह समृद्ध प्रस्तुति का अहसास कराता है। हिन्दी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित इस कविता माला का आवरण पृष्ठ एकदम आकर्षित करता है जिसकी सज्जा एवं चित्रांकन लाजवाब हैं। प्रभावी मुद्रण की यह पुस्तक 47 कविताओं का उपस्थिति स्थल है। रचनाएं सहजस्वाभाविक व जन जीवन से जुड़ी होने के कारण पाठक को अपनेपन का अहसास कराती हैं। पढ़ते पढ़ते कई जगह यादों के स्वप्नलोक की भी यात्रा हो जाती है। जहाँ पृष्ठों की रचना 'अच्छा है बकरापनद्वारा मनुष्य की 'पशुवृतिकी पतन पराकाष्ठा और जानवरों की 'मानवताकी समृद्ध महानता को बड़े ही सहज भाव से उकेरा गया है वहीं मात्र 19 शब्दों की एक रचना 'काशसम्मान वापसी पाखण्ड पर एक करारा तमाचा है। सामान्य जनजीवन का हिस्सा बन चुके धरना प्रदर्शन व दिल्ली की पेयजल समस्या जैसे विषय जहाँ ख़ूबसूरती से पंक्तिबद्ध किए गए हैं वहीं 'परिवर्तननाम की कविता के माध्यम से बदलते सामाजिक मूल्यों पर कटाक्ष किया गया है। यहाँ कविताओं में एक तरफ सर्वजन हिताय - सर्व जन सुखाय की मनोभावना व्यक्त है तो दूसरी ओर बंजारे मन की आवारगी दृष्टव्य है। पुस्तक शीर्षक वाली कविता पुलिस कार्य प्रणाली का प्रथम दृष्टया वर्णन करती है। एक अन्य रचना द्वारा हाल के ज्वलंत विषय प्याज - टमाटर की महंगाई को बड़े सहज भाव से चिन्हित किया गया है। 
जन सुलभ भाषा में साधारण जनजीवन से जुड़ी ये रचनाएं जन मानस का जीवन वृतांत सुनाती हुई स्वर लहरी हैं। 
कवि ने इस पुस्तक के माध्यम से समाज के प्रति निज उत्तरदायित्व का निर्वहन और कुरीति निवारण का आह्वान किया है। 
सुमित प्रताप सिंह को बहुत बहुत बधाई!

- श्री अनिल समोता 
     इंस्पेक्टर, दिल्ली पुलिस
      द्वारका, नई दिल्ली-75 

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