आधुनिक अभिमन्यु (लघु कथा)
                                      
                                      
                                        
                                          
                                            
                                            
ठाकुर साब के घर में खुशियाँ मनाई जा रही थीं. उनकी पुत्रवधु की चौथी सन्तान जन्म लेने वाली थी. अल्ट्रासाउंड नामक महान तकनीकि द्वारा ज्ञात किया जा चुका था, कि गर्भ में लड़का ही है. ठाकुर साब की तीनों पोतियाँ भी अपने भाई के आने को लेकर उत्साहित थीं. पूरे परिवार में उत्सव का माहौल था. इन सबके विपरीत ठाकुर साब  का भावी पोता अपनी  माँ के गर्भ में गंभीर चिन्तन में मग्न था. जिस प्रकार अभिमन्यु ने  अपनी माँ सुभद्रा  के गर्भ में रहते हुए पिता अर्जुन से चक्रव्यूह तोड़ने का अधूरा पाठ सुना था, उसी प्रकार ठाकुर साब का अजन्मा पोता भी अपने पिता द्वारा माँ को सुनाये गये वचन नौ महीने से  सुनता आया था. वह भली-भाँति जान गया था, कि किस प्रकार लायक होते हुए भी उसके पिता ने आरक्षण नामक दैत्य के कारण पूरा जीवन धक्के खाए थे तथा अंत में नौकरी न मिलने पर परचून की दुकान लगाकर ही गुजर-बसर करना स्वीकार किया था. उसने अपने पिता के मुख से मँहगाई व गरीबी नामक डायनों के अत्याचारों को भी खूब सुना व महसूस किया था. बालक ने पूरी रात सोचने के बाद एक निर्णय लिया और अगले दिन वह मृत  पैदा हुआ.  
                                            
                                              
                                            
                                            
                                            
                                              लेखक - सुमित प्रताप सिंह
                                            
                                            
                                            
                                              
                                            
                                            
                                              इटावा, नई दिल्ली, भारत 
                                            
                                           
                                         
                                        
                                        
                                       
                                      
                                     
                                    
                                    
                                    
                                   
                                  
                                  
                                 
                                
                                
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बहुत ही मार्मिक प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteशुक्रिया राजेन्द्र कुमार जी...
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteशुक्रिया अरुन जी...
Deleteउफ़ कितना मार्मिक
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए शुक्रिया वंदना गुप्ता जी...
Deleteबेटी ने तो ज़माने को दुश्मन जाना था ,बेटे को पिता के कर्ज का ध्यान आ गया ,हमारे सिस्टम ने उसे मंहगाई में यूँही अजन्मे ही मार दिया ,बहुत मार्मिक प्रस्तुति सुमित जी ,समझ नहीं आता वाह वाह करूँ या आह करूँ
ReplyDeleteशुक्रिया सरिता भाटिया जी...
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